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Who was Pope Francis: वेटिकन की तरफ से एक वीडियो संदेश में बताया गया कि रोमन कैथोलिक चर्च के पहले लैटिन अमेरिकी नेता पोप फ्रांसिस का निधन हो गया है।

  • Writer: soniya
    soniya
  • Apr 21
  • 3 min read

Updated: Apr 27


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88 वर्ष की उम्र में पोप फ्रांसिस का निधन, वेटिकन सिटी में ली अंतिम सांस/getty images

विश्व भर के करोड़ों कैथोलिकों के लिए एक शोक समाचार सामने आया है। कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। सोमवार सुबह वेटिकन सिटी स्थित अपने आवास में उन्होंने अंतिम सांस ली। वेटिकन प्रशासन के एक प्रमुख पदाधिकारी कार्डिनल केविन फारेल, जो ‘कैमरलेंगो’ की भूमिका निभा रहे हैं, ने इस दुखद घटना की आधिकारिक पुष्टि की।


कैमरलेंगो कौन होते हैं और उनका क्या कार्य होता है?


कैमरलेंगो का पद वेटिकन प्रशासन में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह पद किसी वरिष्ठ कार्डिनल को सौंपा जाता है, जिनका दायित्व पोप के निधन या इस्तीफे की स्थिति में आधिकारिक घोषणा करना और आगे की औपचारिक प्रक्रियाओं को संचालित करना होता है। कार्डिनल केविन फारेल ने बयान जारी कर कहा, "रोम के बिशप, हमारे प्रिय पोप फ्रांसिस, आज सुबह 7 बजकर 35 मिनट पर प्रभु यीशु के पास लौट गए। उनका जीवन पूरी तरह से प्रभु यीशु और उनके चर्च की सेवा में समर्पित रहा।"


स्वास्थ्य में गिरावट के बावजूद निभाया अंतिम सार्वजनिक कर्तव्य


पोप फ्रांसिस पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे। उन्हें हाल ही में निमोनिया हो गया था, जिससे वे धीरे-धीरे उबर रहे थे। इसके बावजूद, उन्होंने रविवार को ईस्टर के पावन अवसर पर अपने अनुयायियों को आशीर्वाद देने के लिए सेंट पीटर्स स्क्वायर में जनसमूह के सामने उपस्थिति दर्ज कराई थी। इस अवसर पर हजारों लोगों ने उनका स्वागत तालियों की गूंज के साथ किया।

उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा, "मेरे प्यारे भाइयों और बहनों, आप सभी को ईस्टर की हार्दिक शुभकामनाएं।" इस दौरान उनकी आवाज पहले की अपेक्षा अधिक सशक्त और प्रभावशाली सुनाई दी। हालांकि, उन्होंने ईस्टर की पारंपरिक प्रार्थना को खुद नहीं पढ़ा बल्कि यह जिम्मेदारी सेवानिवृत्त कार्डिनल एंजेलो कोमास्ट्री को सौंप दी थी। प्रार्थना समाप्त होने के बाद वे सेंट पीटर्स बेसिलिका की बालकनी पर आए और हाथ हिलाकर लोगों का अभिवादन किया। इसके पश्चात उन्होंने अपना भाषण एक सहयोगी से पढ़वाया।


एक आध्यात्मिक युग का अंत


पोप फ्रांसिस, जिनका असली नाम जोर्ज मारियो बेर्गोलियो था, वर्ष 2013 में पोप बने थे। वे पहले लैटिन अमेरिकी पोप थे और साथ ही पहले येसुइट पंथ से आने वाले पोप भी थे। उन्होंने चर्च के भीतर अनेक सुधारों की शुरुआत की और गरीबों, पर्यावरण और सामाजिक समानता के पक्ष में स्पष्ट आवाज उठाई।

उनकी अगुवाई में चर्च ने पारंपरिक सोच से आगे बढ़ते हुए LGBTQ+ समुदाय, प्रवासियों और महिलाओं से जुड़े कई मुद्दों पर नई दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश की। उन्होंने बार-बार यह दोहराया कि चर्च को केवल सिद्धांतों का संरक्षक नहीं, बल्कि एक जीवित समुदाय के रूप में कार्य करना चाहिए जो करुणा और न्याय के सिद्धांतों पर टिका हो।


वेटिकन में शुरू हुई विधिवत प्रक्रियाएं


Pope Francis के निधन के बाद वेटिकन में संबंधित विधिक और धार्मिक प्रक्रियाएं शुरू कर दी गई हैं। कैमरलेंगो द्वारा उनके निधन की घोषणा के पश्चात पोप की अंतिम यात्रा, शोक सभाएं और नए पोप के चुनाव की प्रक्रिया (कॉन्क्लेव) की तैयारियां शुरू होंगी। यह प्रक्रिया अत्यंत गोपनीय और पारंपरिक होती है, जिसमें कार्डिनल्स मिलकर वेटिकन के सिस्टीन चैपल में बंद कमरे में नए पोप का चयन करते हैं।


दुनिया भर से श्रद्धांजलियां


पोप फ्रांसिस के निधन की खबर फैलते ही दुनिया भर के राजनेताओं, धार्मिक नेताओं और आम लोगों ने सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। भारत के प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर लिखा, “पोप फ्रांसिस एक प्रेरणास्रोत थे जिन्होंने मानवता, करुणा और भाईचारे का संदेश दिया। उनका निधन पूरी मानवता के लिए क्षति है।”


Pope Francis की विरासत


पोप फ्रांसिस ने धर्म को केवल एक अनुशासन नहीं बल्कि सेवा का माध्यम माना। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि चर्च की भूमिका केवल उपदेशों तक सीमित न रह जाए, बल्कि समाज के सबसे कमजोर वर्गों के लिए आशा का केंद्र बने। जलवायु परिवर्तन, युद्ध, गरीबी और अन्य मानवीय संकटों पर उनकी चिंता और उनके समाधान के प्रयास उन्हें एक युगद्रष्टा धर्मगुरु के रूप में स्थापित करते हैं।

उनका जाना न केवल एक धार्मिक नेता की विदाई है, बल्कि विश्व समुदाय ने एक ऐसा मार्गदर्शक खोया है, जिसने प्रेम, करुणा और इंसानियत का संदेश पूरी दुनिया में फैलाया।

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