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हमने पीटा था कि जुआ खेलोगे: IPL गेम में 3 करोड़ जीतने वाले विवेक के पिता ने कहा- जुआरी ना बनें बच्चे

  • Writer: soniya
    soniya
  • Apr 5
  • 3 min read


Image /freepik
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उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के एक छोटे से गांव गोपारा में रहने वाले 12वीं कक्षा के छात्र विवेक मौर्य ने अचानक ही देशभर की सुर्खियों में अपनी जगह बना ली है। वजह है ऑनलाइन फैंटेसी क्रिकेट ऐप ‘माई इलेवन सर्किल’ पर बनाई गई टीम जिसने उसे एक नहीं, पूरे 3 करोड़ रुपये और एक महंगी थार गाड़ी जितवा दी। लेकिन हैरानी की बात यह है कि जहां एक तरफ लोग इस अप्रत्याशित जीत की बधाई दे रहे हैं, वहीं विवेक के पिता कृष्ण देव मौर्य इस पूरे घटनाक्रम से ज़रा भी खुश नहीं हैं।


जीत से पहले की डांट और मोबाइल पर बैन


विवेक ने 2 अप्रैल को रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु बनाम गुजरात टाइटंस के मैच के लिए दो टीमें बनाई थीं—एक टीम सिर्फ 1 रुपये में और दूसरी टीम 49 रुपये में। किस्मत ने साथ दिया और 49 रुपये वाली टीम ने सर्वाधिक रैंक हासिल कर ली। लेकिन इससे ठीक पहले, विवेक के पिता को पता चल चुका था कि उनका बेटा उनके फोन से फैंटेसी क्रिकेट गेम खेल रहा है। ये जानने के बाद उन्होंने न सिर्फ उसे डांटा, बल्कि उसकी पिटाई भी की और उसके हाथ से मोबाइल फोन छीन लिया।


अगले दिन आई कॉल ने उड़ा दिए होश


जिस दिन विवेक की पिटाई हुई, उसी रात माई इलेवन सर्किल की तरफ से उनके पिता के मोबाइल पर कॉल आया जिसमें बताया गया कि उनके बेटे ने 3 करोड़ रुपये और थार जीती है। शुरुआत में तो उन्हें लगा कि कोई फ्रॉड कॉल है, लेकिन जब उन्होंने ऐप में लॉग इन कर के देखा, तो वहां विजेता बनने की सूचना साफ दिख रही थी। अब यह बात गांव में फैल चुकी थी और लोग घर पर बधाई देने पहुंचने लगे, लेकिन विवेक के पिता का रुख अब भी गंभीर बना रहा।


विवेक के पिता की चेतावनी: “बच्चों को ऐसे गेम से दूर रहना चाहिए”


विवेक के पिता कृष्ण देव मौर्य ने शुक्रवार को मीडिया से बातचीत में कहा,

“मेरे बेटे ने भले ही पैसा जीत लिया हो, लेकिन मैं नहीं चाहता कि दूसरे बच्चे भी इस चक्कर में पड़ें। यह कोई मेहनत की कमाई नहीं है, यह किस्मत का खेल है। ऐसे गेम बच्चों को जुए की लत में डाल सकते हैं। मैं खुद नहीं चाहता था कि मेरा बेटा इस रास्ते पर चले।”


उन्होंने कहा कि एक बच्चे की जीत के कारण लाखों बच्चों ने इस ऐप को डाउनलोड कर लिया होगा, जिससे कंपनी को फायदा हुआ, लेकिन उनमें से अधिकांश बच्चे हारेंगे।

यह जीत कितनी भी बड़ी क्यों न हो, इससे हम उत्साहित नहीं हैं। असली जीत मेहनत की होती है, शॉर्टकट नहीं,उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा।

आईआईटी की तैयारी के बीच आया यह मोड़


विवेक इस समय आईआईटी-जेईई की तैयारी कर रहा है और अपने भविष्य को लेकर गंभीर भी है। लेकिन यह घटना उसके जीवन का एक ऐसा मोड़ बन गई है, जहां सफलता एक अलग ही रूप में सामने आई है—एक ऐसी सफलता जिससे खुद विजेता का परिवार भी संतुष्ट नहीं है।


गांव में चर्चा का विषय बना हुआ है

गोपारा गांव में विवेक की जीत चर्चा का विषय जरूर बनी हुई है। लोग इसे एक प्रेरणादायक कहानी के रूप में देख रहे हैं, लेकिन विवेक के पिता का नजरिया इस कहानी को और गहराई देता है।

उनका मानना है कि जब युवा पीढ़ी बिना मेहनत के करोड़ों जीतने के सपने देखने लगती है, तो यह समाज के लिए खतरे की घंटी है।


बच्चों को जिम्मेदारी और संतुलन सिखाना जरूरी


यह मामला सिर्फ एक छात्र की फैंटेसी क्रिकेट में किस्मत बदलने की कहानी नहीं है, बल्कि यह नवीन तकनीक, डिजिटल लत और पारिवारिक मूल्यों के बीच के संघर्ष को भी उजागर करता है। जहां आज के युवा डिजिटल प्लेटफॉर्म पर संभावनाएं तलाश रहे हैं, वहीं माता-पिता अब भी पारंपरिक मेहनत और पढ़ाई को प्राथमिकता देते हैं।


इस घटना से हमे प्रेरणा लेनी चाहिए


विवेक की कहानी एक ऐसी सच्चाई है जो करोड़ों भारतीय घरों में घट रही है। यह न सिर्फ एक चौंकाने वाली जीत की दास्तां है, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी भी है कि किस्मत की बाज़ी जीतना तो आसान है, लेकिन उससे मिलने वाली सीख कहीं ज़्यादा अहम है। विवेक के पिता की तरह ही हमें भी यह समझना होगा कि बच्चों को सिर्फ जीत नहीं, सही दिशा भी देना ज़रूरी है।

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